23 मार्च को किसानों ने किया शहीदों को नमन,जुल्म के खिलाफ प्रतिरोध की स्वर को बुलंद रखना बड़ी जीत है। - state-news.in
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23 मार्च को किसानों ने किया शहीदों को नमन,जुल्म के खिलाफ प्रतिरोध की स्वर को बुलंद रखना बड़ी जीत है।

 


शहीदे आजम भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव की बलिदान को याद करते हुए   अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा के सदस्यों ने राजिम में शहादत दिवस मनाया। 

भगतसिंह की जीवनी व योगदान  पर प्रकाश डालते हुए अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा के उपाध्यक्ष मदन लाल साहू ने कहा कि शहीदे आजम भगतसिंह युवा अवस्था मे ही दुनिया की राजनीति और सत्ता के चरित्र को समझते थे जिसके कारण ही वे समता मूलक समाज निर्माण में अपने आप को कुर्बान कर दिया इंसान द्वारा इंसान का शोषण न हो इस विचार को मानते हुए उनके साथी सुखदेव और राजगुरु ने हंसते हुए फांसी की फंदे को गले लगा लिया। 

अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा अभनपुर के संयोजक हेमंत कुमार टंडन ने जातिवादी, पाखंड और धार्मिक कुरीतियों पर प्रहार करते हुए कहा कि आज भी सत्ता के लिए जाति धर्म का उपयोग किया जा रहा है और सत्ता पाने के लिए नफरत का बीज भी बोया जाता है। जबकि अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन में सारे भारतीय एक थे तथा सभी धर्म के लोगों ने भारत की आजादी में अपना योगदान दिया है।  भारत की गंगा जमुनी तहजीब को बनाये रखना हमारी जिम्मेदारी है। 

तेजराम विद्रोही ने भगतसिंह के कथन को दोहराते हुए कहा कि जब गतिरोध की स्थिति लोगों को अपने शिकंजे में जकड़ लेती है तो किसी प्रकार की तब्दीली से हिचकिचाते हैं। इस जड़ता और निष्क्रियता को तोड़ने के लिए एक क्रांतिकारी ऊर्जा पैदा करने की जरूरत होती है, अन्यथा पतन और बर्बादी का वातारण छा जाता है। लोगों को गुमराह करने वाली प्रतिक्रियावादी शक्तियां जनता को गलत रास्ते पर ले जाने में सफल हो जाती है। इससे इंसान की प्रगति रुक जाती है और उसमें गतिरोध आ जाता है। इस परिस्थिति को बदलने के लिए यह जरूरी है कि क्रांति की ऊर्जा ताजा की जाए ताकि इंसानियत की रूह में हरकत पैदा हो। भगत सिंह ने कहा है कि क्रांति से हमारा मकसद खूनखराबा नहीं है, हमारा मकसद शोषणकारी लुटेरी व्यवस्था में आमूल चूल परिर्वतन है। इसलिए जुल्म के खिलाफ प्रतिरोध की स्वर को बुलंद रखना बड़ी जीत है। 

कार्यक्रम में  ललित कुमार , देवसिंह तारक, उत्तम कुमार, रेखुराम, नंदू ध्रुव, जहुर राम, होरीलाल, पवन कुमार, विक्रम निषाद, शेषनारायण आदि ने अपने विचार रखे।

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