सरकार की कथनी और करनी में अंतर, किसान अपनी मनचाहे दाम पर कैसे बेचेंगे धान ,किसान ने लगाया अपने धान की ढेरों में तख्ती और कहा सरकार मेरी गुहार सुनो - state-news.in
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सरकार की कथनी और करनी में अंतर, किसान अपनी मनचाहे दाम पर कैसे बेचेंगे धान ,किसान ने लगाया अपने धान की ढेरों में तख्ती और कहा सरकार मेरी गुहार सुनो

 


 कृषि उपज मंडियों में उनके उपज का दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य की तुलना में प्रति क्विंटल 350 रुपये से 450 रुपये तक नुकसान हो रही है। बेमौसम बारिश व कीट प्रकोप के चलते किसानों का उत्पादन लागत अधिक होने से वे आर्थिक रूप से बदहाल है।  अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा के राज्य सचिव एवं ग्राम बेलटुकरी के किसान तेजराम विद्रोही ने बताया कि वे 24 नवम्बर को 70 बोरा सरना धान लेकर कृषि उपज मंडी राजिम में बेचने के लिए लाए थे जिसे 30 बोरा एवं 40 बोरा का दो ढेर बनाया था। धान की नमी 13.60% एकदम सूखा है जो  औसत अच्छी किस्म की श्रेणी में आता है। व्यापारी द्वारा लगाई गई बोली 1386 रुपये प्रति क्विंटल एवं 1384 रुपये प्रति क्विंटल है जो न्यूनतम समर्थन मूल्य से 479 रुपये एवं 481 रुपये प्रति क्विंटल कम है जिसे किसान द्वारा बेचने से इनकार कर दिया है। इसी तरह अन्य किसानों को प्रति क्विंटल 350 रुपये से लेकर 450 रुपये तक नुकसान उठाकर अपनी उपज बेचना  पड़ा  है।


एक ओर केन्द्र सरकार किसानों की आय दुगुनी करने की बात करते हुए नया कृषि कानून लाया है। जिसमे कहा गया है कि किसान अपनी उपज को राज्य के बाहर या राज्य के भीतर कहीं भी किसी भी व्यापारी को किसान अपनी मनचाहे दाम पर बेच सकते हैं। लेकिन यह केवल झूठ का जुमला ही दिखाई दे रहा है।  छत्तीसगढ़ सरकार भी मंडी व्यवस्था को मजबूत करने और किसानों को उनके उपज का वाजिब दाम दिलाने की बात करती है लेकिन कोई भी जनप्रतिनिधि कृषि उपज मंडियों में खड़ा होकर किसानों को उनके उपज का मनचाहे दाम तो क्या केन्द्र सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य  दिलाने के पक्ष में दिखाई नहीं दे रहा है। किसानों को उनकी उपज की न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलने की गारंटी कानून केन्द्र व राज्य सरकार को लागू करना चाहिए तभी किसानों का भला हो सकेगा। नहीं तो किसान आर्थिक रूप से लूटे जाते रहेंगे और सरकार की खोखले दावों की पोल खुलते रहेगी। इसलिए धान के ढेर में तख्ती लगाया है कि सरकार अपनी प्रतिनिधि भेजकर किसानों की गुहार सुने।

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