किसान आत्महत्या के बढ़ते मामले और राजनीतिक नूराकुश्ती बेहद शर्मनाक है : तेजराम विद्रोही - state-news.in
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किसान आत्महत्या के बढ़ते मामले और राजनीतिक नूराकुश्ती बेहद शर्मनाक है : तेजराम विद्रोही

 


छत्तीसगढ़ में इस साल एक के बाद किसान आत्महत्या के मामले सामने आ रहे हैं। इस मामले को लेकर और पीड़ित परिवारों को मुआवजा देने की मांग को लेकर राज्य की विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी ने एक नवम्बर को खेत सत्याग्रह भी किया और उसके तीसरे दिन एक और किसान आत्महत्या की घटना घटित हो गई। यह वही विकास खण्ड है जहाँ पूर्व कृषि मंत्री ने खेत सत्याग्रह किया। यह वह गांव है जहाँ सत्तापक्ष के मजबूत नेता विधायक है और उनका गृह ग्राम है।  सवाल यह नही है कि पीड़ित किसान किस नेता या मंत्री के गांव व क्षेत्र का है। सवाल यह है कि इस प्रकार की घटनाएं घटित हो रही है उसे कैसे रोका जाये। आत्महत्या के बाद पीड़ित परिवार को मुआवजा देने की बात होती है लेकिन उसे आत्मघाती कदम उठाने से रोके जाने वाले पहलुओं पर अब तक ध्यान नहीं दिया जा रहा है। 

उक्त बातें अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा के सचिव तेजराम विद्रोही ने कहा कि 2 जनवरी 2020 को राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो ने वर्ष 2017 में कृषि क्षेत्र में आत्महत्या से संबंधित आंकड़ों को प्रकाशित  करते हुए बताया है कि कृषि में शामिल 10655 लोगों ने आत्महत्या किया है। जो कृषि से संबंधित लोगों द्वारा आत्महत्या का 8.2% है। आत्महत्या के मामले में महाराष्ट्र, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, आंध्र प्रदेश और छत्तीसगढ़ ऊपर के पाँच राज्यों में शामिल है। 

कृषकों द्वारा कृषि से संबंधित कार्यों हेतु बैंकों व साहूकारों से कर्ज लिया जाता है किन्तु प्राकृतिक आपदाओं या मानवजनित आपदाओं के कारण जब उनके फसल का पैदावार अनुमान के अनुरूप नहीं होती है तो वे कर्ज चुकाने में असमर्थ हो जाते हैं और इसी ग्लानि में आत्महत्या कर लेते हैं। पारिवारिक समस्याओं जैसे जमीन विवाद, आपसी लड़ाईयां इत्यादि भी कृषकों में आत्महत्या का एक कारण है। जलवायु परिवर्तन के कारण सूखा एवं बाढ़, फसल कटाई के समय होने वाली बेमौसम बारिश व कीट प्रकोप से फसल बर्बाद हो जाती है लेकिन इसके एवज में शासन की ओर से कोई प्रयाप्त राहत राशि नहीं मिलती जिससे किसान आर्थिक रूप से परेशान होते हैं क्योंकि वे फसल उत्पादन में अपनी जमा पूंजी लगा चुके होते हैं।

 किसानों को आत्मघाती कदम उठाने से रोकने के लिए कम कीमत पर बीमा एवं स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराया जाना, राज्य स्तर पर किसान आयोग का गठन कर किसी भी प्रकार की समस्याओं का जल्द हल निकालना, कृषि शोध एवं Jअनुसंधान के माध्यम से ऐसे बीजों को विकसित करना चाहिए जो प्रतिकूल मौसम में भी उपज दे सके। किसानों को तकनीकी प्रबंधन एवं विकास संबंधी सहायता दी जाए स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करते हुए किसानों के लिए जोखिम फण्ड की स्थापना किया जाना चाहिए। 

केन्द्र व राज्य सरकारों को उपरोक्त विषयों पर गंभीरता पूर्वक विचार करने की आवश्यकता है। नहीं तो सत्ता पक्ष व विपक्ष की राजनीतिक नूराकुश्ती में किसान आत्महत्या का समाधान निकलने वाली नहीं है। केवल आत्महत्या किये किसानों को मुआवजा देने के नाम पर राजनीतिक रोटियां सिंकती रहेगी। क्षतिपूर्ति देने के बजाय ऐसा क्षति न हो इसके लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। 

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