सहकारी समितियों का विभाजन न्यायोचित नहीं : चंद्रशेखर साहू
प्राथमिक साख सहकारी महासंघ जिला गरियाबंद के महासचिव,राजिम कोऑपरेटिव सोसायटी के अध्यक्ष एवं जिला पंचायत सदस्य चंद्रशेखर साहू ने गरियाबंद जिले की सहकारी समितियों को विभक्त कर 28 नई समितियां बनाये जाने के निर्णय को अनुचित करार देते हुए इसकी कड़े शब्दों में निंदा की है उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में संचालित जिले की 38 सहकारी समितियों में से लगभग 30-32 समितियां आर्थिक नुकसान की स्तिथि में चल रही है ऐसी परिस्थितियों में समितियों को विभक्त करने से बनी नई समितियों के संचालन में आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। जब से प्रदेश में भूपेश बघेल के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी है तब से ही सहकारी समितियों के अस्तित्व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं और सरकार अपने चुनिंदा चहेते कांग्रेस कार्यकर्ताओं को उपकृत कर नगरीय निकायों के एल्डरमैन की तर्ज पर सहकारी समितियों में सदस्यों को मनोनीत करना चाहती है जिसके लिए सरकार ने पूर्व में प्रदेश भर में संचालित सहकारी समितियों को भंग करने का कुटिल निर्णय लिया था लेकिन माननीय उच्च न्यायालय छत्तीसगढ़ बिलासपुर द्वारा दिए गए स्थगन आदेश के चलते आज सहकारी समितियां संचालित हो पा रही है। इन सबके चलते सरकार अब अपनी मंसूबों की पूर्ति के लिए दूसरा हथकंडे अपना रही है और सहकारी समितियों के पुनर्गठन के नाम पर सहकारिता की जड़ो को कमजोर करने पर तुली हुई है जिसका प्राथमिक साख सहकारी महासंघ पुरजोर तरीके से विरोध करती है।
ऐसा ही प्रयास कई वर्षों पूर्व सरगुजा व रायगढ़ जैसे जिलों में भी किया गया था लेकिन परिणाम सबके सामने है, आज सरगुजा सँभाग में सहकारी समितियां इन्ही नीतियों के चलते भंग हो चुकी हैं। जिले के धान संग्रहण केंद्र कुंडेलभांठा में रखी गई धान खुले में पड़ी हुई हैं जिसका उठाव नहीं होने के कारण बड़ा नुकसान होगा और नए विपणन वर्ष में खरीदने वाले धान के रखरखाव में भी दिक्कतें आएंगी। चंद्रशेखर साहू ने आगे बताया कि वर्तमान में संचालित कई समितियों की आर्थिक स्थिति इतनी कमजोर हो गई है कि उनके पास अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को वेतन देने के भी पैसे नहीं है और विगत वर्ष की गई धान खरीदी की कमीशन राशि भी सहकारी समितियों को अप्राप्त है जिसके चलते सहकारी समितियां आर्थिक विपन्नता की गर्त में समा रहे हैं, ऐसे में एक समिति को तोड़कर दो या तीन समिति बनाना किसी भी दृष्टिकोण से न्यायोचित नहीं है क्योंकि नई समितियों को संचालन निष्पादण में नए कार्यालय का व्यय,कर्मचारियों का व्यय, फर्नीचर व विद्युत व्यवस्था के व्यय का अतिरिक्त भार वहन करना पड़ेगा जो वर्तमान समय में संभव नहीं है और समितियों की आर्थिक स्थिति अत्यधिक कमजोर होने के चलते धीरे-धीरे अपने अस्तित्व को खो देगी जो प्रदेश की भूपेश बघेल सरकार की मंशा है और फिर सरकार सहकारी समितियों के संचालन में अड़चनें बताकर उन्हें भंग कर देगी और अपने कार्यकर्ताओं को मनोनीत करेगी जो बैरिस्टर ठाकुर प्यारेलाल सिंह जी की "बिन सहकार नहीं उद्धार" की सहकारिता के विषय पर की गई परिकल्पना पर कुठाराघात होगा।