गरियाबंद की आदिवासी परिवार के इस बेटी को भी बचाने व पढ़ाने की है जरूरत ।
गरियाबंद-पैदा होने के 6 महीने बाद ही पैरालिसिस से ग्रसित हो गई बेटी,गरीब पिता के संघर्ष से 7 साल बाद विकलांगता प्रमाण पत्र बन तो गया,पर मिलने वाले जरूरी सुविधा के अभाव में 9 साल की हो चुकी बेटी जिंदगी से संघर्ष कर रही है।न चल सकती है न बैठ,लाचारी की जीवन गुजार रही है गरीब आदिवासी की बेट! छुरा के रसेला ग्राम में गरीब आदिवासी परिवार सुरेश मरकाम के घर 9 साल पहले पैदा हुई बेटी की बदकिस्मती कहे या फिर प्रसाशन कि उदासीनता,बेटी लाचारी की जिंदगी जी रही है।पिता सुरेश ने बताया कि बेटी के पैदा होने के 6 माह बाद उसके शरीर का कोई भी बाहरी अंग काम करना बंद कर दिया।बेटी कल्याणी 3 साल की थी तब 2013 में उसका इलाज छुरा सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र से हुवा।ब्लड सेम्पल अंबेडकर अस्पताल भेजा गया तो रिपोर्ट में बताया गया कि उसे एक्यूट फ्लोसिस पैरालिसिस हो गया है।कुछ दिन उपचार किया गया फिर परिवार को उनके हाल मे छोड़ दिया गया।कहा गया कि बगैर प्रमाण पत्र के उसे कोई सुविधा नही मिलेगी।विकलांगता प्रमाण पत्र के लिए पिता दर दर भटकते रहा।28 अक्टूबर 2018 को बेटी का विकलांगता प्रमाण पत्र मिल तो गया,पर उपचार,पेंशन जैसे अन्य जरूरी सुविधा अब तक नही मिला। कांग्रेस सरकार से मदद की आस लगाए बैठा है परिवार- दादा नाथू राम ने कहा कि उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर है,ईलाज नही करा सकते,पोती को नित्यकर्म से लेकर हर काम के लिए उठा के ले जाना पड़ता है।शारीरक कमजोरी इतनी है कि अभी केवल हड्डी का ढांचा लगती है। दादा न कहा कि पुराने सरकार में केवल कार्ड बनाने 8 साल लग गए,इसलिए और ज्यादा सहयोग की उम्मीद नही किया।सरकार बदलते ही आदिवासी परिवार में उम्मीद की किरण जागी है ।परिवार को किसी मसीहा का इंतजार है,जो उनकी बातें सरकार तक ले जा सके। ठीक हो सकती है,चरणबद्ध तरीके से उपचार करे तो-सीएमएचओ एन आर नवरत्न ने कहा की इस स्टेज के पैरालिसिस का उपचार सम्भव है,चरणबद्ध तरीके से उपचार मिले तो सम्भावना बढ़ जाती है । विकलांगता प्रमाण पत्र के आधार पर सरकारी इलाज भी सम्भव है।अब तक इस पीड़िता की जानकारी विभाग को नही मिली है।जानकारी मगवा कर आवश्यक कार्यवाही किया जाएगा।