छत्तीसगढ़
गरियाबंद जिला अंतर्गत ग्राम केशोडार के 48 वर्षीय कुमार साय कमार इस बात से खुश है कि अब वो भी किसान कहलाने लगा है। कमार जनजाति से ताल्लुक रखने वाले इस युवा परिवार अपने परम्परागत व्यवसाय जैसे जंगल जाना, कंदमूल लाना, शिकार करना और बांस से बने वस्तुओं का निर्माण करना, से जाना पहचाना जाता था। लेकिन जब से इन्हें वन अधिकार पत्र मिला है, किसान के रूप में भी पहचान बन गई है। कुमार साय बताते है कि लगभग दो एकड़ काबिज जमीन पर उनके दादा खेती करते आ रहे थे। वन अधिकार अधिनियम के तहत उन्हें पट्टा मिला। पिछले 30 साल से इनके दादा और पिता जी डर कर खेती करते आ रहे थे। इस दौरान उनकी मृत्यु हो गई। लेकिन जैसे ही वन अधिकार पत्र मेरी मां फुलबाई और मुझे प्राप्त हुआ तब से पुरे आत्मविश्वास और तैयारी के साथ धान की खेती हर वर्ष कर रहे है। पिछले वर्ष समर्थन मूल्य पर करीब 30 क्विंटल धान बेचा था। मां फुलबाई के नाम पर भी 5 एकड़ जमीन में लगभग 50 क्विंटल धान बेचा। इस तरह कुल 7 एकड़ खेत में हमारे द्वारा किसानी किया जा रहा है। हमारा 6 सदस्यीय परिवार अब आर्थिक रूप से सक्षम है। खेती से मिलने वाले धान से घर बनाकर मोटरसायकल भी खरीद ली है। कुमार साय और उनकी मां सरकार का धन्यवाद ज्ञापित करते नहीं थकते। इसी तरह गांव के ही हितग्राही भगवान दास मानिकपुरी ने बताया कि वे भी शासन से वन अधिकार पत्र से मिली जमीन 1 एकड़ 70 डिसमिल में किसानी कर रहे है। उन्होंने बताया कि पहले चराई का डर था, साथ ही जमीन पर मालिकाना हक नहीं होने से डर कर खेती करते थे। आज स्थिति बदल गई है। अब हम पुरे हक के साथ खेती कर रहे है। गांव के ही जयसिंग कमार ने भी बताया कि अब उन्हें धान, खाद, बीज लेने में कोई परेशानी नहीं होती। उनका ऋण पुस्तिका भी मिल चुका है। गरियाबंद विकासखण्ड के अनुसूचित जनजाति कमार बाहुल्य गांव केशोडार के 40 परिवारों को 38.75 हेक्टेयर भूमि का वन अधिकार पत्र प्राप्त शासन द्वारा प्रदान किया जा चुका है। अब यहां के कमार जनजाति भी किसान कहलाने लग गये है।
वन अधिकार पत्र मिलने से अब किसान कहलाने लगा हूँ- कुमारसाय कमार परम्परागत व्यवसाय के अलावा किसानी मुख्य व्यवसाय बना
Monday, July 27, 2020
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गरियाबंद जिला अंतर्गत ग्राम केशोडार के 48 वर्षीय कुमार साय कमार इस बात से खुश है कि अब वो भी किसान कहलाने लगा है। कमार जनजाति से ताल्लुक रखने वाले इस युवा परिवार अपने परम्परागत व्यवसाय जैसे जंगल जाना, कंदमूल लाना, शिकार करना और बांस से बने वस्तुओं का निर्माण करना, से जाना पहचाना जाता था। लेकिन जब से इन्हें वन अधिकार पत्र मिला है, किसान के रूप में भी पहचान बन गई है। कुमार साय बताते है कि लगभग दो एकड़ काबिज जमीन पर उनके दादा खेती करते आ रहे थे। वन अधिकार अधिनियम के तहत उन्हें पट्टा मिला। पिछले 30 साल से इनके दादा और पिता जी डर कर खेती करते आ रहे थे। इस दौरान उनकी मृत्यु हो गई। लेकिन जैसे ही वन अधिकार पत्र मेरी मां फुलबाई और मुझे प्राप्त हुआ तब से पुरे आत्मविश्वास और तैयारी के साथ धान की खेती हर वर्ष कर रहे है। पिछले वर्ष समर्थन मूल्य पर करीब 30 क्विंटल धान बेचा था। मां फुलबाई के नाम पर भी 5 एकड़ जमीन में लगभग 50 क्विंटल धान बेचा। इस तरह कुल 7 एकड़ खेत में हमारे द्वारा किसानी किया जा रहा है। हमारा 6 सदस्यीय परिवार अब आर्थिक रूप से सक्षम है। खेती से मिलने वाले धान से घर बनाकर मोटरसायकल भी खरीद ली है। कुमार साय और उनकी मां सरकार का धन्यवाद ज्ञापित करते नहीं थकते। इसी तरह गांव के ही हितग्राही भगवान दास मानिकपुरी ने बताया कि वे भी शासन से वन अधिकार पत्र से मिली जमीन 1 एकड़ 70 डिसमिल में किसानी कर रहे है। उन्होंने बताया कि पहले चराई का डर था, साथ ही जमीन पर मालिकाना हक नहीं होने से डर कर खेती करते थे। आज स्थिति बदल गई है। अब हम पुरे हक के साथ खेती कर रहे है। गांव के ही जयसिंग कमार ने भी बताया कि अब उन्हें धान, खाद, बीज लेने में कोई परेशानी नहीं होती। उनका ऋण पुस्तिका भी मिल चुका है। गरियाबंद विकासखण्ड के अनुसूचित जनजाति कमार बाहुल्य गांव केशोडार के 40 परिवारों को 38.75 हेक्टेयर भूमि का वन अधिकार पत्र प्राप्त शासन द्वारा प्रदान किया जा चुका है। अब यहां के कमार जनजाति भी किसान कहलाने लग गये है।
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