छत्तीसगढ़
गरियाबंद जिले के सामाजिक कार्यकर्ता एवं कार्यकारिणी अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ प्रदेष साहू संघ, युवा प्रकोष्ठ रायपुर संभाग सचिव, रूपसिंग साहू, छत्तीसगढ़ शासन, श्रम विभाग को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि छत्तीसगढ़ राज्य के अधिकांश जिलों से श्रमिकों/मजदूरों द्वारा अपनी रोजी-रोटी एवं जीवन-यापन के लिए काम करने अन्य प्रदेशो में पलायन किये हुए थे, जो कोरोना महामारी के चलते अपने-अपने जिलों में अपने गृहग्राम की ओर वापस लौट रहे हैं, मजदूरों को वापस लौटने में उन्हे कितनी पीड़ा एवं परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, मजदूर पैदल ही अपने गृहग्राम में आने को आतुर है। इसे दृष्टिगत रखते हुए जो श्रमिक/मजदूर अपने गृहग्राम में वापस आने के बाद पुनः अन्य प्रदेशो की ओर न जायें अथवा मजदूर पलायन न करें, इसके लिए केन्द्र व राज्य सरकार की महती योजनाओं का क्रियान्वयन करते हुए छोटे-छोटे लघु एवं कुटीर उद्योगों एवं स्थानीय कारोबार को बढ़ावा देना चाहिये, जिससे राज्य के श्रमिकों/मजदूरों को अपने-अपने जिले में ही रोजगार उपलब्ध हो सके और अन्य प्रदेषों में पलायन करने से मजदूरों को रोका जा सके। श्री साहू ने पत्र में यह भी आग्रह किया है कि सचिव, श्रम विभाग द्वारा गरियाबंद जिले जैसे छत्तीसगढ़ राज्य के सभी जिलों के ग्राम पंचायतों के सरपंचों एवं स्थानीय जनप्रतिनिधियों को पत्र लिखकर एवं विडियो कान्फ्रेन्सिंग के माध्यम से यह निर्देष दिया जाना उचित होगा कि ग्राम पंचायत एवं क्षेत्र स्तर पर ग्रामीणों एवं मजदूरों को राज्य की रोजगार मूलक योजनाओं के बारे में अवगत करायें, इन्हें गांव में ही रोजी-रोटी कमाने के अवसर मुहैया करवाए जायें, ताकि ये स्वाभिमान और प्रेम से अपने घरों में रह भी सके और गांवों को छोड़कर फिर से पलायन न करे अन्य राज्यों तक न पहुंचे। ग्रामीणों को अपने अंचल में ही रोजगार उपलब्ध कराने हेतु श्रमिकों को प्रेरित व जागरूक किया जाना चाहिये। राज्य के श्रमिकों/मजदूरों को अन्य प्रदेशो में पलायन न करना पड़े इसके लिए केन्द्र व राज्य सरकार को मिलकर तत्काल इस विषय पर कोई ठोस कानून बनाया जाना चाहिये क्या प्रवासी मजदूर भाई एवं बहनों को राज्य एवं केन्द्र सरकार के महती योजना का लाभ नही मिल रहा है, क्या आखिर दूसरा प्रदेश मे काम की तालाश मे जाने की क्या मजबूरी है यहा शासन प्रशासन के लिए चिंता की विषय हैकि राज्य के मजदूर दूसरे राज्य में पलायन न करें। यदि इस हेतु पहले से कोई कानून बना होता तो छत्तीसगढ़ राज्य से लगभग 1,25,000 मजदूरों/श्रमिकों को अन्य प्रदेषों में पलायन नहीं करना पड़ता। इस प्रकार पलायन की समस्या शासन-प्रशासन में चिन्ता एवं चिन्तन करने का विषय बन गया है। आज कोरोना संकट की घड़ी में सभी राजनैतिक पार्टियों को एकजूट होकर कोरोना जैसी महामारी से निजात दिलाने सहयोग करते हुए कार्य करना चाहिये। श्री साहू ने पलायन से लौट रहे श्रमिक/मजदूर भाईयों एवं बहिनों से आग्रह करते हुए अपील किया है कि अब गांवों को हमारी पुरातन आर्थिक व्यवस्था की ओर लौट जाना ही तर्कसंगत होगा, उन्होंने कहा कि ’’अब शहर नहीं गांव चलेंगे, नौकरी नहीं गांव में रहकर नव-निर्माण करेंगे।’’ हमारी सरकारों और नीति-निर्धारकों को भारत की पुरातन आर्थिक व्यवस्था की ओर निहारना चाहिये, हमारे गांव सदियों से ही आत्मनिर्भर रहे हैं, उन्हें कभी किसी वैश्विक आर्थिक मंदी ने प्रभावित नही किया था ,और न ही किसी बड़े राष्ट्रीय आर्थिक संकटों से घबराये थे। आज जब पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है, तब भी विश्वाश के साथ मजदूर शहर छोड़कर गांव जा रहे है कि हमारे गांव हमें कम से कम भूख और प्यास से मरने नहीं देगी। जब इन लोगों में अपने गरीब और विपन्न होते गांवों के प्रति इतना विश्वाश है तो इस विस्वाश को आत्मविश्वास में बदलने का कार्य क्यों न किया जाए। एक बार आत्मविश्वाश उपजा तो फिर उसे आत्मनिर्भरता में बदलने में देर नहीं लगेगी। कोरोना महामारी के संक्रमण ने जो हालात पैदा किए हैं, वे इशारा कर रहे हैं कि अब एक बार फिर गांवों को समृद्ध बनाया जाए, इसका संकल्प लिया जाना चाहिये।
अब शहर नहीं गांव चलेंगे, नौकरी नहीं गांव में रहकर नव-निर्माण करेंगे - रूपसिंगसाहू
Thursday, May 21, 2020
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गरियाबंद जिले के सामाजिक कार्यकर्ता एवं कार्यकारिणी अध्यक्ष, छत्तीसगढ़ प्रदेष साहू संघ, युवा प्रकोष्ठ रायपुर संभाग सचिव, रूपसिंग साहू, छत्तीसगढ़ शासन, श्रम विभाग को पत्र लिखकर अनुरोध किया है कि छत्तीसगढ़ राज्य के अधिकांश जिलों से श्रमिकों/मजदूरों द्वारा अपनी रोजी-रोटी एवं जीवन-यापन के लिए काम करने अन्य प्रदेशो में पलायन किये हुए थे, जो कोरोना महामारी के चलते अपने-अपने जिलों में अपने गृहग्राम की ओर वापस लौट रहे हैं, मजदूरों को वापस लौटने में उन्हे कितनी पीड़ा एवं परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है, मजदूर पैदल ही अपने गृहग्राम में आने को आतुर है। इसे दृष्टिगत रखते हुए जो श्रमिक/मजदूर अपने गृहग्राम में वापस आने के बाद पुनः अन्य प्रदेशो की ओर न जायें अथवा मजदूर पलायन न करें, इसके लिए केन्द्र व राज्य सरकार की महती योजनाओं का क्रियान्वयन करते हुए छोटे-छोटे लघु एवं कुटीर उद्योगों एवं स्थानीय कारोबार को बढ़ावा देना चाहिये, जिससे राज्य के श्रमिकों/मजदूरों को अपने-अपने जिले में ही रोजगार उपलब्ध हो सके और अन्य प्रदेषों में पलायन करने से मजदूरों को रोका जा सके। श्री साहू ने पत्र में यह भी आग्रह किया है कि सचिव, श्रम विभाग द्वारा गरियाबंद जिले जैसे छत्तीसगढ़ राज्य के सभी जिलों के ग्राम पंचायतों के सरपंचों एवं स्थानीय जनप्रतिनिधियों को पत्र लिखकर एवं विडियो कान्फ्रेन्सिंग के माध्यम से यह निर्देष दिया जाना उचित होगा कि ग्राम पंचायत एवं क्षेत्र स्तर पर ग्रामीणों एवं मजदूरों को राज्य की रोजगार मूलक योजनाओं के बारे में अवगत करायें, इन्हें गांव में ही रोजी-रोटी कमाने के अवसर मुहैया करवाए जायें, ताकि ये स्वाभिमान और प्रेम से अपने घरों में रह भी सके और गांवों को छोड़कर फिर से पलायन न करे अन्य राज्यों तक न पहुंचे। ग्रामीणों को अपने अंचल में ही रोजगार उपलब्ध कराने हेतु श्रमिकों को प्रेरित व जागरूक किया जाना चाहिये। राज्य के श्रमिकों/मजदूरों को अन्य प्रदेशो में पलायन न करना पड़े इसके लिए केन्द्र व राज्य सरकार को मिलकर तत्काल इस विषय पर कोई ठोस कानून बनाया जाना चाहिये क्या प्रवासी मजदूर भाई एवं बहनों को राज्य एवं केन्द्र सरकार के महती योजना का लाभ नही मिल रहा है, क्या आखिर दूसरा प्रदेश मे काम की तालाश मे जाने की क्या मजबूरी है यहा शासन प्रशासन के लिए चिंता की विषय हैकि राज्य के मजदूर दूसरे राज्य में पलायन न करें। यदि इस हेतु पहले से कोई कानून बना होता तो छत्तीसगढ़ राज्य से लगभग 1,25,000 मजदूरों/श्रमिकों को अन्य प्रदेषों में पलायन नहीं करना पड़ता। इस प्रकार पलायन की समस्या शासन-प्रशासन में चिन्ता एवं चिन्तन करने का विषय बन गया है। आज कोरोना संकट की घड़ी में सभी राजनैतिक पार्टियों को एकजूट होकर कोरोना जैसी महामारी से निजात दिलाने सहयोग करते हुए कार्य करना चाहिये। श्री साहू ने पलायन से लौट रहे श्रमिक/मजदूर भाईयों एवं बहिनों से आग्रह करते हुए अपील किया है कि अब गांवों को हमारी पुरातन आर्थिक व्यवस्था की ओर लौट जाना ही तर्कसंगत होगा, उन्होंने कहा कि ’’अब शहर नहीं गांव चलेंगे, नौकरी नहीं गांव में रहकर नव-निर्माण करेंगे।’’ हमारी सरकारों और नीति-निर्धारकों को भारत की पुरातन आर्थिक व्यवस्था की ओर निहारना चाहिये, हमारे गांव सदियों से ही आत्मनिर्भर रहे हैं, उन्हें कभी किसी वैश्विक आर्थिक मंदी ने प्रभावित नही किया था ,और न ही किसी बड़े राष्ट्रीय आर्थिक संकटों से घबराये थे। आज जब पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है, तब भी विश्वाश के साथ मजदूर शहर छोड़कर गांव जा रहे है कि हमारे गांव हमें कम से कम भूख और प्यास से मरने नहीं देगी। जब इन लोगों में अपने गरीब और विपन्न होते गांवों के प्रति इतना विश्वाश है तो इस विस्वाश को आत्मविश्वास में बदलने का कार्य क्यों न किया जाए। एक बार आत्मविश्वाश उपजा तो फिर उसे आत्मनिर्भरता में बदलने में देर नहीं लगेगी। कोरोना महामारी के संक्रमण ने जो हालात पैदा किए हैं, वे इशारा कर रहे हैं कि अब एक बार फिर गांवों को समृद्ध बनाया जाए, इसका संकल्प लिया जाना चाहिये।
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